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Jain Deepawali जैन दीपावली

दीपावली के शुभ अवसर पर भारत की प्राचीन भाषा "प्राकृत" में प्रकाशित होने वाले प्रथम पत्र "पागद-भासा" की तरफ से प्रथम शताब्दी के प्राकृत आगम कसायपाहुड की जयधवला टीका के एक महत्वपूर्ण सन्दर्भ के साथ हार्दिक शुभकामनायें - "कत्तियमास किण्ह पक्ख चौदस दिवस केवलणाणेण सह एत्थ गमिय परिणिव्वुओ वड्ढमाणो ।अमावसीए परिणिव्वाण पूजा सयल देविहिं कया |" अर्थात् कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष  चतुर्दशी को भगवान् वर्धमान निर्वाण गये और अमावस्या को समस्त देवों ने निर्वाण पूजा की । -संपादक-डॅा०अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली,pagadbhasa001@gmail.com

अहिंसा की स्थापना के तरीके भी अहिंसक होने ही चाहिए |

मेरी बात का बुरा लग सकता है किन्तु यह सही है कि अहिंसा की स्थापना के तरीके भी अहिंसक होने ही चाहिए | किसी को जबरजस्ती कुछ खाने से रोकना ,लगभग वैसा ही है जैसा किसी के मुख में जबरजस्ती कुछ ठूंस देना | हम क्रोध के माध्यम से प्रेम,करुणा,जीव दया की स्थायी स्थापना करना चाहते हैं तो ये उसी धर्म की हानि है जिसे हम स्थापित करना चाहते हैं |ये लगभग वैसा ही है जैसा कि परमाणु बम चलाकर शांति स्थापित करना |-डॉ अनेकांत

भारत का सबसे प्राचीन संवत्

 भारत का सबसे प्राचीन संवत्  -डॉ अनेकांत कुमार जैन  (anekant76@gmail.com,09711397716) 1.ईसा से ५२७ वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्णा अमावस्या को दीपावली के दिन भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ था ,उसके एक दिन बाद कार्तिक शुक्ला एकम से भारतवर्ष का सबसे प्राचीन संवत् “वीर निर्वाण संवत्”प्रारंभ हुआ था |यह हिजरी, विक्रम, ईसवी, शक आदि सभी संवतों से भी अधिक पुराना है | 2. जैन परंपरा के प्राकृत तथा संस्कृत भाषा के प्राचीन ग्रंथों/पांडुलिपियों में तो इस बात के अनेक प्रमाण है ही साथ ही पुरातात्विक साक्ष्यों से भी यह संवत् सबसे अधिक प्राचीन सिद्ध होता है | 3. राजस्थान के अजमेर जिले में भिनय तहसील के अंतर्गत वडली एक गाँव है |सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने १९१२ ईश्वी में वडली के शिलालेख की खोज की थी |वडली के शिलालेख में वीर निर्वाण संवत का उल्लेख हुआ है |यह वीर शब्द महावीर स्वामी के लिए आया है |इस शिलालेख पर ८४ वीर संवत लिखा है |भगवान् महावीर के निर्वाण के ८४ वें वर्ष में यह शिलालेख लिखा गया |सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राजबली पाण्डेय ने अपनी पुस्तक इंडियन पैलियो ग्राफी

मध्यकालीन कवियों ने भी छेड़ा था मीट विरोधी आन्दोलन

मध्यकालीन कवियों ने भी छेड़ा था मीट विरोधी आन्दोलन डॉ. अनेकान्त कुमार जैन anekant76@gmail.com भारत में हिन्दी के संत कवियों ने अपनी सरल किन्तु सारगर्भित तथा मर्मस्पर्शी वाणी के द्वारा भारतीय समाज को पाखण्डों , व्यर्थ के क्रियाकाण्डों तथा रूढि़यों से निजात दिलाने का बहुत बड़ा काम किया था। सिर्फ हिन्दी साहित्य के इतिहास में ही नहीं , वरन् आज भी भारतीय जनमानस में कबीर , गुरु रविदास , दादू , मीरा , रज्जब , मलूकदास , तुकाराम आदि अनेक संत कवियों के नाम सिर्फ बुद्धि में नहीं अवचेतनात्मक स्तर पर भी अंकित हैं। इनकी विषेशता थी कि ये किसी सम्प्रदाय से बंधे हुए नहीं थे। जीवन के छोटे-छोटे अनुभवों से जुड़कर काव्य का सर्जन करते थे और जनमानस को समझाते थे। उनके इन्हीं अनुभवों का संकलन एक नये जीवन दर्शन की पृष्ठभूमि बन गया। हिन्दू हो या मुसलमान , सभी धर्मों में व्याप्त बुराइयों की जमकर आलोचना करते थे। इनके दोहे , छंद आज भी भारत के कण-कण में व्याप्त हैं और मनुष्य तथा समाज को जीवन की सच्ची राह बताते रहते हैं। इनके साहित्य में एक महत्वपूर्ण बात और देखने को आयी और वह है मांसाहार का विरोध। इन सं

‘गो रक्षा और जैन धर्म’

Open Publishing for all सादर प्रकाशनार्थ- ‘गो रक्षा और जैन धर्म’ -डॉ अनेकांत कुमार जैन  anekant76@gmail.com   जैन धर्म का मूल अहिंसा है अतः जैन धर्म सभी जीवों की हत्या और उनके मांस सेवन का कड़ा निषेध करता है | वे सिर्फ गाय ही नहीं बल्कि किसी भी पशु-पक्षी को कष्ट नहीं पहुँचाते ।यह सही है कि चूँकि जैन धर्म में मात्र वीतरागता की ही पूजा की जाती है अतः वे गाय की अर्घ चढ़ा कर पूजा अर्चना नहीं करते हैं और न ही इस बात पर विश्वास करते हैं कि उसमें ३३ करोड़ देवी देवताओं का वास है और न ही यह मानते हैं कि परलोक में वैतरणी नदी उसकी पूँछ पकड़ कर ही पार की जाती है |इस विषय में जैन धर्म बहुत यथार्थवादी है,वह इसे जरूरी नहीं मानता कि किसी को सम्मान देने के लिए उसमें किसी भी प्रकार की धार्मिक आस्था या देवत्व की स्थापना की ही जाय | जैन उसे एक पवित्र पशु अवश्य मानते हैं तथा उसका माता के समान सम्मान भी करते हैं | उसकी बहुविध उपयोगिता के कारण अन्य पशुओं की अपेक्षा उसके प्रति जैनों में बहुमान भी अधिक है |जैन मुनियों की पवित्र एवं कठिन आहारचर्या में भी तुरंत दुहा हुआ और मर्यादित समय में उष्ण किया हु

दसलक्षण पर्व पर तत्त्वार्थसूत्र का स्वाध्याय बंद न होने दें - डॉ अनेकांत कुमार जैन

"दसलक्षण पर्व पर तत्त्वार्थसूत्र का स्वाध्याय बंद न होने दें " - डॉ अनेकांत कुमार जैन १.तत्वार्थसूत्र प्रथम शताब्दी में संस्कृत भाषा में आचार्य उमास्वामि द्वारा रचा गया एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें द्वादशांग का सार दस अध्यायों में बीज/सूत्र रूप में गुम्फित है |दिगंबर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में सर्वमान्य है|सर्वाधिक सिद्धिदायक है | २. दसलक्षणपर्व पर स्वाध्याय सभा में दस दिन तक प्रत्येक दिन इस ग्रन्थ का पूर्ण वाचन और एक अध्याय का क्रम से विवेचन होने की सुदीर्घ शास्त्रीय/आर्ष परंपरा है | इसके वाचन से एक उपवास जैसा फल प्राप्त होता है | ३.यही एक अवसर होता है जब समाज में इस जिनागम का स्वाध्याय होता है और यह ग्रन्थ पुनः जीवन्त हो उठता है किन्तु वर्तमान में देखने में आ रहा है कि धर्मप्रवचन के नाम पर प्रवचन की गद्दी पर बैठ कर मात्र भाषण बाजी करने वाले कई विद्वान् और साधु दसलक्षण पर्व पर किसी न किसी बहाने से सूत्र जी की व्याख्या नहीं करते हैं|क्यूँ कि सूत्र की व्याख्या में ही असली वैदुष्य की परीक्षा होती है| ४.इसके स्वाध्याय में श्रोताओं की कमी का बहाना न बना कर यदि

अंतिम साँस तक संयम और समता