प्रकृति एकांत वादी नहीं है कुछ , कभी भी , सब कुछ नहीं हो सकता | प्रकृति संतुलन बैठाती रहती है | वह हमारी तरह भावुक और एकान्तवादी नहीं है | हम भावुकता में बहुत जल्दी जीवन के किसी एक पक्ष को सम्पूर्ण जीवन भले ही घोषित करते फिरें पर ऐसा होता नहीं हैं | जैसे हम बहुत भावुकता में आदर्शवादी बन कर यह कह देते है कि १.प्रेम ही जीवन है | २.अहिंसा ही जीवन है | ३. जल ही जीवन है | ४.अध्यात्म ही जीवन है | आदि आदि यथार्थ यह है कि ये चाहे कितने भी महत्वपूर्ण क्यूँ न हों किन्तु सब कुछ नहीं हैं | ये जीवन का एक अनिवार्य पक्ष , सुन्दर पक्ष हो सकता है लेकिन चाहे कुछ भी हो सम्पूर्ण जीवन नहीं हो सकता | इसीलिए कायनात इन्साफ करती है क्यूँ कि हमारी तरह वह सत्य की बहुआयामिता का अपलाप नहीं कर सकती | इसीलिए विश्व के इतिहास में दुनिया के किसी भी धर्म को कायनात उसकी कुछ एक विशेषताओं के कारण एक बार उसे छा जाने का मौका देती है किन्तु चाहे वे सम्पूर्ण सत्य दृष्टि का कितना भी दावा करें वे अन्ततोगत्वा ज्यादा से ज्यादा बहुभाग का एक हिस्सा बन कर रह जाते हैं , उन की कुछ विशेषताओं के कारण एक कोना