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क्या हैं असली प्यार के मायने ?

प्रिय बहना मधुर स्नेह       आजकल तुम जिस दौर से गुजर रही हो उसका मुझे अहसास है ।उम्र के इस उफान पर जिस प्रकार हमें अपनी पढाई और कैरियर के प्रति सजग रहना आवश्यक है उसी प्रकार प्यार के रिश्तों संबंधों से निर्मित अपने पारिवारिक और सामाजिक परिवेश के प्रति भी बहुत सजगता जरूरी है ।दोनों ही स्थितिओं में हमें बड़ों के अनुभवों का लाभ उठाना आना चाहिए। आज तुम्हारी जो भावनात्मक   और पारिवारिक स्थिति है वैसी स्थिति कमोवेश हर लड़की की होती है ।          आज तुम अपने पैरों पर खड़ी हो और विवाह के प्रसंग पर स्व-चयनित वर से ही करने की जिद घर वालों के सामने रखी है ।एक ऐसा वर जिसकी पृष्ठभूमि अपने धर्म संस्कृति से बिलकुल जुदा है और तुम्हारी हर जिद और इच्छा की पूर्ती में तत्पर तुम्हारे माता पिता सहित सभी अभिभावक आज तुम्हारी इस जिद को नहीं मान रहे हैं तो तुम्हें वे बहुत बुरे लग रहे हैं ।         प्यार करना बुरी बात नहीं है ।जब नयी जवानी का सावन आता है और घटायें घुमड़ घुमड़ कर बरसती हैं तो बारिस सब कुछ भिगो देती है तब ऐसे मौसम में बारिश में भीगना कोई जुर्म नहीं है ।मैं इस निश्छल प्रेम को अपरा

मुनियों के चातुर्मास से होती है आध्यात्मिक क्रांति (दैनिक जागरण में प्रकाशित लेख )

जीवन में संतुलन

समाज आपके दान का भूखा नहीं

संस्कृत शिक्षा का विकास

विकास किसे कहते हैं ?

‘दार्शनिक समन्वय की जैन दृष्टि’ कृति को महावीर पुरस्कार-२०१३

‘दार्शनिक समन्वय की जैन दृष्टि’ कृति को महावीर पुरस्कार-२०१३   ‘महर्षि वादरायण व्यास’युवा राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित विद्वान डॉ अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली की महत्वपूर्ण शोध कृति ‘दार्शनिक समन्वय की जैन दृष्टि : नयवाद’ को जैन विद्या संस्थान ,जयपुर द्वारा प्रदान किये जाने वाले लब्ध प्रतिष्ठित “महावीर पुरस्कार-२०१३”के लिए वहाँ की विशेषज्ञ समिति ने चयनित किया है |यह कृति डॉ अनेकान्त के शोधप्रबंध का प्रकाशित संस्करण है जिसे उन्होंने प्रो.दयानंद भार्गव जी के निर्देशन में जैन विश्व भारती संस्थान ,लाडनूं में रह कर पूर्ण किया था |उक्त ग्रन्थ का गरिमापूर्ण प्रकाशन वैशाली स्थित प्राकृत ,जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान ने किया है |यह कृति लगभग २३० पृष्ठों की है तथा आठ अध्यायों में विभाजित है |इस कृति की विशेषता यह है कि लेखक ने जैन दर्शन के नयवाद की शास्त्रीय मीमांसा की है और इस सिद्धांत के ऐतिहासिक विकास को दर्शाया है |मुख्यरूप से सात नयों की तुलना विभिन्न भारतीय दर्शनों के साथ प्रामाणिक रूप से करके नयों की व्यापकता को दार्शनिक दृष्टि से खोजने का प्रयास किया है | ज्ञातव्य है कि